a href="http://hindiblogs.charchaa.org" target="_blank">हिंदी चिट्ठा संकलक

Monday 26 November 2007

उन उंची उंची पहाडियों पर... पहुंचना है मुझे!

यह सुहावना मौसम... हवाओं के ठंडे झोंके...ऊफ! मन करता है कि कुलांचे भरती हुई अभी उस पड़ी पर पहुंच जाउ... वहां खडे वृक्षों से पुछू कि यह सब यहाँ कब और कैसे पहुंच गए?

..." 'ऐ उंचे उंचे वृक्षों,मुझे बताओ कि बिना पांव के तुम सब यहां कब और कैसे पहुंच गए?"'मै मन ही मन पूछती हूं और फिर शरमाती हूं कि मै तो अभी यही रास्ते ही हूं!

...पर अभी तो मज़िल बहुत दूर है, मुझे अभी चलते ही जाना है, चलते ही जाना ...बिना थके और बिना रुके! अब जरुरत महसूस हो रही है, एक ऐसे टॉनिककी जो मुझमें और जोश भर दें...और उमंग भर दें...और जवानी भर दें!

...अब चलते चलते मुझे नज़र आ रही है ये फूलों की सुंदर वादी! आह् क्या खुश्बू है...मन मेरा तो गार्डन गार्डन हो गया! अरे वाह् यह तो मेरे पसंदीदा गुलाब-रोज-है।मेरे लिए इससे बढकर और टॉनिक क्या हो सकता है?

चलो!...अब देर किस बात की? उन उंची उंची पहाडियों पर जल्दी पहुंचना है मुझे...उन उंचें उंचे वृक्षों से पूछना है मुझे....

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