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Saturday 19 January 2008

...फिर उसी जगह पर हम!

...फिर उसी जगह पर हम!

यह तो वही मंझिल है,
फिर यहीं आ गए हम....
सफर किया था शुरू यहीं से,
फिर यही कैसे आ पहुंचें हम!


रास्ते टेढे-मेढे...
ऊँचें नीचे...पथरीले...
चलते चलते थक कर,
अब जहाँ रुके हुए हम!


ना समय की मर्यादा,
ना अपनी हालात पे सोचा हमने...
बस! मंझिल की तलाश में,
निकल पड़े थे हम!


...गर होता पता हमें तो...
चलते जाने की जहमत...
क्यों उठाते ख्वामख्वा,
खैर! इतने तो नादां नहीं थे हम!




नहीं! अब हम फिर चलेंगे,
बढ़ते जाएंगे आगे.. फिर-फिरसे॥
उम्मीदें अब भी है कायम ...क्यों कि,
दिल के कमजोर नहीं है हम!








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